Thursday, March 5, 2020

जंगल में खेती से कैसे रुकेगा जलवायु परिवर्तन

अमरीका के मैसाचुसेट्स राज्य के रहने वाले योनो नीगर एक किसान हैं. वो एक नए तरह का तजुर्बा कर रहे हैं. उन्होंने कनेक्टिकट नदी के किनारे अपनी ज़मीन के टुकड़े पर अखरोट के पेड़ लगाए हैं. ये पेड़, छह बरस में फल देने लगेंगे. उन्होंने अपने अखरोट के बागान का नाम रखा है, 'बिग रिवर चेस्टनट्स'.

एक ज़माना था जब अमरीका में अखरोट के बागान बहुत हुआ करते थे. लेकिन, बीसवीं सदी की शुरुआत में हुई एक बीमारी की वजह से ये सारे बागान ख़त्म हो गए. अब, अमरीकी किसान एक बार फिर से अखरोट के बागान लगा रहे हैं.

पर, योनो नीगर ने जब अखरोट के पेड़ लगाए, तो उनके सामने सवाल था कि अगले छह साल तक क्या करेंगे. उनके अखरोट के पेड़ों से आमदनी तो उसके बाद ही होगी. तब तक वो क्या करें?

इस सवाल के जवाब में नीगर ने खेती का नया चलन चलाया है. उन्होंने अखरोट के इस बागान के बीच में छोटे-छोटे पेड़ और झाड़ियां रोप दी हैं. जैसे कि पपीता, रसभरी और तेंदू. ये सभी फ़सलें अगले दो बरस में तैयार हो जाएंगी. इनसे नीगर को आमदनी होने लगेगी. नीगर ने इस बागान में मुर्गियों को भी पाल रखा है, ताकि ज़मीन से फ़ौरी आमदनी भी होने लगे.

खेती का ये नया तरीक़ा है. जिसे किसी ज़मीन में वन लगाने के साथ-साथ उसके नीचे आमदनी के लिए अन्य पौधे भी रोपे गए हैं. आज के दौर में आम तौर पर हम खेतों में एक ही फ़सल उगाते देखते हैं. जिनका उत्पादन रासायनिक उर्वरकों से बढ़ाया जाता है. किसान, पेड़ लगाने से बचते हैं. क्योंकि उनसे आमदनी होने में वक़्त लगता है. इससे धरती को दोहरा नुक़सान हो रहा है. एक तो ज़मीन की ऊपरी परत लगातार काश्त से कमज़ोर हो रही है. वहीं, खेती करने के लिए पेड़ भी काटे जा रहे हैं, जिनसे जलवायु परिवर्तन की रफ़्तार तेज़ होती जा रही है.

इन्हीं चुनौतियों के जवाब में योनो नीगर जैसे किसान फॉरेस्ट फार्मिंग यानी वन में खेती जैसे तजुर्बे कर रहे हैं. जिस में बड़े-बड़े पेड़ों के नीचे छोटे पौधे लगा कर ज़मीन से दोहरा लाभ कमाया जा रहा है. साथ ही, इससे वनों का दायरा भी बढ़ रहा है.

नीगर कहते हैं कि, "पेड़ ऐसी जगहों पर भी उगाए जा सकते हैं, जहां खेती नहीं हो सकती. जैसे की पहाड़ी इलाक़े. जहां पर भी खेती होती है. लंबे समय तक जुताई-बुवाई से मिट्टी कमज़ोर हो जाती है. इनकी जगह हम पेड़ लगाएं, तो मिट्टी को मज़बूती मिलती है और पेड़, हवा से कार्बन भी सोखते हैं. इससे हमारी खाद्य व्यवस्था में विविधता भी आती है."

एक ज़माने में अमरीका में चेस्टनट या अखरोट के इतने पेड़ होते थे कि इनका आटा पिसा कर खाया जाता था. हालांकि, अब अखरोट, मक्के या गेहूं की जगह तो नहीं ले सकते. लेकिन, ये कार्बोहाइड्रेट के बड़े स्रोत हैं. हम इन्हें अपने रोज़मर्रा के खान-पान का हिस्सा बना सके हैं.

योनो नीगर कहते हैं कि, "चेस्टनट लगाने का मतलब है कि हम पेड़ पर अनाज उगा रहे हैं."

यूं तो इंसान हज़ारों साल से पेड़ों के नीचे खेती करता आया है. कभी खेतों में पेड़ लगा कर. या फिर मौजूदा जंगलों के नीचे जड़ी-बूटी उघा कर. या साए में उगने वाले पौधे लगा कर एग्रोफॉरेस्ट्री यानी वनों में खेती की जाती रही है.

जैसे कि इंग्लैंड में एक ज़माने में खेतो के किनारे किनारे झाड़ियां उगाई जाती थीं. इनसे कई फ़ायदे होते थे. ये कई जानवरों की प्रजातियों को आसरा देती थीं. और खेतों की हिफ़ाज़त के भी काम आती हैं.

जो नुस्खा अमरीका के योनो नीगर अपना रहे हैं, उससे कई फ़ायदे हो सकते हैं. हमारी खाद्य व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव आ सकते हैं. इससे जैव विविधता आ सकती है. पेड़ों को काटने से बचाया जा सकता है. साएदार इलाक़ों में अलग-अलग तरह के पौधे, जैसे मशरूम या आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां उगा कर किसानों की आमदनी बढ़ाई जा सकती है.

कहने का मतलब ये कि खेती के लिए मौजूदा जंगलों को काटने के बजाय उन पेड़ों के नीचे ही आमदनी के वैकल्पिक संसाधन उगाए जा सकते हैं. इससे पेड़ों का भी संरक्षण होगा और किसानों को कमाई के नए अवसर भी मिलेंगे.

फॉरेस्ट फार्मिग से ऐसी प्रजातियों को भी बचाया जा सकता है, जो जंगलों में ही पैदा होती हैं. लेकिन, जंगलों की लगातर कटाई से उनके विलुप्त हो जाने का ख़तरा मंडरा रहा है.

विकासशील देशों के लिए तो ये नुस्खा और कारगर हो सकता है. जैसे कि मध्य अमरीकी देश ग्वाटेमाला में स्थानीय समुदाय के लोग ताड़ के जंगलों के बीच रैमन नट उगा रहे हैं. इनके लिए उन्हें आश्चर्यजनक तरीक़े से बाज़ार भी मिल गया है.

ग्वाटेमाला में इस प्रोजेक्ट से जुड़े अमरीकी रिसर्चर डीन करेंट कहते हैं कि, "स्थानीय लोग जंगलों में शहद, मशरूम और अन्य हर्बल पौधे उगा कर अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं. वो तरह-तरह के पौधे लगा कर प्रयोग कर सकते हैं. एक नहीं कारगर होता, तो दूसरे पौधे को आज़माया जा सकता है."

कई फ़ायदों के बावजूद जंगलों के साथ खेती की परंपरा को मध्य युग से ही काफ़ी नुक़सान पहुंचा है. उन्नीसवीं सदी में रासायनिक खाद की ईजाद के बाद से जंगलों और खेतों के बीच बड़ा फ़र्क़ पैदा हो गया. ज़्यादा अनाज उगाने के लिए बड़ी संख्या में पेड़ काटे गए. ब्रिटेन में 1947 से अब तक ग्रामीण इलाक़ों की आधी झाड़ियां साफ़ हो चुकी हैं.

आज दुनिया के ज़्यादातर किसान खेती और जंगल उगाने को अलग-अलग कर के देखते हैं.

लेकिन, योनो नीगर जैसे किसान अब फॉरेस्ट फार्मिंग की सदियों पुरानी परंपरा को फिर से ज़िंदा कर रहे हैं. यूरोपीय यूनियन के एक अध्ययन के अनुसार, यूरोप में इस समय क़रीब 33 लाख हेक्टेयर ज़मीन पर फॉरेस्ट फार्मिंग हो रही है. ख़ास तौर से स्पेन, पुर्तगाल और साइप्रस में. ब्रिटेन में भी कई किसान इस में दिलचस्पी दिखा रहे हैं.

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